क्या चिंतन की बात करू मैं जब चिंतन का दौर नहीं
पढ़ते हैं इतहास सभी पर करता कोई और नहीं
जहाँ कवि को मिले प्रेरणा उससे उत्तम ठौर नहीं
हल्दीघाटी की माटी तो चन्दन है कुछ और नहीं
भारतवासी तिलक लगाकर गौरव से भर जाते हैं
परदेसी भी नहीं घूमने तीरथ करने आते हैं

आन बान और स्वाभिमान जब नहीं किसी के पास बचा
बाप्पा रावल के वंशज ने उस युग में इतिहास रचा
बड़े बड़े राजे रजवाड़े जब अखबर के आधीन हुए
तब निर्वासित सिंघासन पर महाराणा आसीन हुए
पूरा भारत पराधीनता की बेड़ी में जकड़ गया
सम्राटों की पदवी पाकर मुगले आज़म अकड़ गया
हल्दीघाटी के समरांगढ़ मे चित्र शौर्य का खींचा है
शत्रु के शोणित से जिसने इस मिटटी को सींचा है

चेतक।।।।।।।।।।।।।

रक्त तलाई में चेतक ने अहि का रक्त कुलीचा है
मनसिंघ के हाथी का मस्तक टांगों से भींचा है
जिसकी टापों की चोटों से हाथी भी चिंघाड़ उठा
शिव का नंदी पर्वत जैसे असुरों को उंघाड उठा
उसकी फुर्ती से सैनिक दल भौचक्के रह जाते थे
फौलादी लातें खाकर हक्के बक्के रह जाते थे
शस्त्र हाँथ से गिर जाते थे प्राण बचाना भारी था
शायद चेतक एकलिंग के नंदी का अवतारी था
समरांगढ़  में दौड़ लगाकर शत्रु दल को कुचला है
उबड़ खाबड़ नदी नालों में सौ-सौ फ़ीट तक उछला है
हां चेतक का आत्मदान तो युगों युगों पर भरी है
राणा ही नहीं पूरा भारत चेतक का आभारी है। 

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