नींव रखी मेवाड़ की तो वो बाप्पा(७३३-७५३ AD ) कहलाये।
एक उनकी हुंकार से थे दुश्मन थर्रये।।
कर दी शुरू राणा हमीर(१३२६ - १३६४ AD )ने राणाओं की कहानी।
शूरवीर और पराक्रमी थे वो महाबलिदानी॥
राणा कुम्भा(१४३३-१४६८ AD ) ने स्वीकारी बस एकलिंग की क्षाया।
राजवंश ने स्वयं को कभी पराधीन ना पाया॥
फिर आया वो महावीर जो रणभूमि का सिंह था।
एक हाँथ और एक आँख, फिर भी निश्चय का अडिग थ॥
देह पर खाये अस्सी घाव बढ़ते रहे वो आगे।
राणा सांगा(१५०८-१५२८ AD ) के प्रताप से तीनो लोक थे कांपे॥
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नोट- उपरोक्त वीर महाराणा प्रताप के पूर्वज(दादे - परदादे) थे। जल्दी ही उदयपुर जाना है ना।
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