जब बसाने का मन में ना हो हौसला


जब बसाने का मन में ना हो हौसला, बेवजह घोसला मत बनाया करो.
और जो उठा न सको तुम गिरे फूल को, इस तरह डालियाँ मत हिलाया करो

वो समंदर नहीं था, थे आंसू मेरे जिनमे तुम तैरते और नहाते रहे
एक हम थे की आंसू की इस झील में बस किनारे पे डुबकी लगाते रहे
मछलियां सब झुलस जाएँगी झील की, अपना पूरा बदन मत डुबाया करो

वो हमें क्या संभालेंगे इस भीड़ में, जिनसे अपना दुपट्टा संभालता नहीं
कैसे मन को मैं कह दूँ सुकोमल है ये, फूल को देखकर जो मचलता नहीं
जिनके दीवारों-दर हैं बने मोम के, उनके घर में न दीपक जलाया करो

प्रेम को ढाई अक्षर का कैसे कहें, प्रेम सागर से गहरा है नभ से बड़ा
प्रेम होता है दिखता नहीं है मगर, प्रेम की ही धुरी पर ये जग है खड़ा
प्रेम के इस नगर में जो अनजान हो, उसको रस्ते गलत मत बताया करो

By- DR. Vishnu Saxena

Comments

  1. दिल को अत्यंत गहराई तक झिंझोड़ने वाली कविता है। इनके गायन की शैली अद्भुत है।

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  2. Vishnu sir we love you ty sooo much

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  3. बहुत मनभावन सार्थक कविता।

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  4. गुरु जी को चरण स्पर्श

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  5. सुंदर अद्भुत कविता मन मस्तिष्क को गहराई से झकझोर देने वाली कविता
    आपको आदरणीय डॉ. विष्णु जी

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