Poetry By "Ganga Mahto" ji-
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मनुवाद मनुवाद मनुष्य को मनुष्य से तोड़ती है,
अब्राहमवाद मनुष्य तो क्या गंगा-जमुना तक को जोड़ती है।
मनुवाद भगवा, तिलक,शिखा में हर कोई सियार नज़र आता हैं,
अब्राहमवाद बकर दाढ़ी व जालीदार टोपी में हर कोई यार नज़र आता हैं।
मनुवाद मनुवाद पे मैं साखा-चूड़ी तोड़ लहंगा उठा के नाचती हूँ,
अब्राहमवाद का नाम सुनते ही मैं काले अरबी बुरके में छुप जाती हूँ।
मनुवाद करती हक़ से वंचित, इस हक़ के लिए सड़क पे लेट जाती हूँ;
अब्राहमवाद हक़ आते ही अफगानी सुरमा व इतर लगा शांतिदूतों के आगे सेट हो जाती हूँ।
क्योंकि मैं आदर्श लिबरल कहलाती हूँ ।
😊😊😊😊😊😊
कवि गंगवा
खोपोली से। 
:) 


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