मेरी मातृभाषा "अवधी(अयोध्यावाणी)" में लिखी एक कविता-
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बताओ रमजानी अब का करिहौ,
बताओ रमजानी अब का करिहौ
बताओ दिलजानी अब का करिहौ,
चली गयी परधानी(प्रधानी) अब का करिहौ
बताओ रमजानी अब का करिहौ.........
नाली, नरेगा, खडंजा मा खायो,
पहिलेन की तालिया का फिर से खोदायो
भरायो नहीं पानी अब का करिहौ,
बताओ रामजानी अब का करिहौ।
चली गयी परधानी.........
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बताओ रमजानी अब का करिहौ,
बताओ रमजानी अब का करिहौ
बताओ दिलजानी अब का करिहौ,
चली गयी परधानी(प्रधानी) अब का करिहौ
बताओ रमजानी अब का करिहौ.........
नाली, नरेगा, खडंजा मा खायो,
पहिलेन की तालिया का फिर से खोदायो
भरायो नहीं पानी अब का करिहौ,
बताओ रामजानी अब का करिहौ।
चली गयी परधानी.........
आलू और रोटी का मुह न लगायो,
तहरी और खिचड़ी तो अबलौं न खायो
उड़ायो बिरियानी अब का करिहौ
बताओ रमजानी अब का करिहौ।
मिलिहैं न अब आँगनबाड़ी की दरिया
खाये-खाये जेहिका मोटान रहे पड़िया(भैस का बच्चा)
भइसि दुबरानी अब का करिहौ
चली गयी परधानी.......
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