जिनके पुरखों ने शोडित से , माटी को लोहित कर डाला।
चूम लिए फांसी के फंदे ,कुल को शोभित कर डाला।।
अंग्रेजी तोप दहाने हों या ,मुगलों की तलवार प्रबल।
बक्ष अड़ा देते थे पुरखे, मन में ले विश्वास अटल ।।
सर्वस्व लुटा डाला औ रण में, महाकाल का रूप बने ।
धर्म चिता में जलकर कितने, देवलोक के भूप बने।।
नित निजत्व का हव्य बना , वे धर्म ध्वजा फहराते थे।
तैमूर वंसियों के हांथों , माँ का आँचल रोज बचाते थे।।
उस पावन समिधा के वंसज ,क्यों ना घाटी में रह सकते हैं ।
केशरिया तिलक लगाते हैं , अब अपमान नहीं सह सकते हैं ।।
अवध छेत्र औ मथुरा काशी , जैसे हैं पावन धाम अमर।
वैष्णो माँ के शक्ति पीठ का, जन जन में है नाम अमर।।
माँ वैष्णो की धरती समीप , मै इक कुटिया नहीं बना सकता।
बड़ा अभागा हिन्दू है रे , इक रैनबसेरा तक नहीं छवा सकता।।
घाटी में प्रवेश करने का भी, अधिकार नहीं हम रखते हैं।
क्या कायर सिंहासन है या, हथियार नहीं हम रखते हैं ??
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लेखक- जनार्दन पाण्डेय "प्रचंड" जी.

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