प्रिये तुम्हारी सुधि को मैंने
प्रिये तुम्हारी सुधि को मैंने।।।।।
प्रिये तुम्हारी सुधि को मैंने, यूँ भी अक्सर चूम लिया....
तुमपर गीत लिखा फिर उसका....
तुमपर गीत लिखा फिर उसका अक्षर-अक्षर चूम लिया....
प्रिये तुम्हारी सुधि को मैंने, यूँ भी अक्सर चूम लिया....
मैं क्या जानू मंदिर-मस्जिद...
मैं क्या जानू मंदिर-मस्जिद , गिरिजा या गुरुद्वारा.....
जिनपर पहली बार दिखा था अल्हड़ रूप तुम्हारा.
मैंने उन पावन राहों का...
मैंने उन पावन राहों का पत्थर -पत्थर चूम लिया.....
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